Inside story of BJP victory in Chhattisgarh Municipal Corporation elections:नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा की बंपर जीत का असर आगामी मंत्रिमंडल विस्तार और निगम-मंडल की सूची में देखने को मिलेगा। यह पहला चुनाव था जिसमें दिल्ली दूर थी और सारी कमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के हाथों में सौंप रखी थीं। साय ने भी नगरीय निकाय के प्रशासनिक निर्णयों की जिम्मेदारी उप मुख्यमंत्री अरुण साव को सौंपी।
साय-साव की जोड़ी ने जो भी निर्णय लिए वह सब सही निकले। इससे दिल्ली में इन दोनों पर विश्वास तो बढ़ा ही, राष्ट्रीय राजनीति में कद बढ़ना भी तय माना जा रहा है। वहीं रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग की बंपर जीत का श्रेय राजेश मूणत, अमर अग्रवाल और गजेंद्र यादव को जा रहा है।
क्योंकि यहां महापौर के उम्मीदवार का चयन इनकी राय से किया गया था। अब इन तीनों में से दो के मंत्री बनने का रास्ता सशक्त बताया जा रहा है। इसके अलावा निकाय चुनाव में पर्दे के पीछे काम करने वाले विधायकों और पदाधिकारियों को भी निगम-मंडल में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।
चुनाव के बाद होगा मंत्रिमंडल विस्तार
रायपुर से मीनल चौबे को महापौर का उम्मीदवार बनाया जाए, जीतने का जिम्मा राजेश मूणत ने लिया था। प्रदेश में सबसे अधिक वोटों से मीनल के जीतने का सीधा असर मूणत के मंत्री पद के दावे को मजबूत करेगा। वहीं बिलासपुर जातिगत समीकरण में फंसने के बाद भी अमर अग्रवाल के कहने पर पूजा विधानी को टिकट दी गई।
वे घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष भी रहे। भाजपा की जीत में घोषणा पत्र की बड़ी भूमिका बताई जा रही है। पार्टी उन्हें इसका इनाम मंत्री बनाकर दे सकती है। गजेंद्र यादव को कांग्रेस का दुर्ग दिया गया था, वहां की जीत का लाभ उन्हें मिलेगा।
जीत के लिए साय ने चुना कठिन रास्ता
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जब यह तय किया कि इस बार महापौर-अध्यक्ष को जनता चुनेगी तो पार्टी के कई लोग खुश नहीं हुए। कांग्रेस के बने सरल रास्ते को छोड़ कठिन को चुनने का विरोध सभी ने किया, लेकिन साय को विश्वास था अपने कामों पर।
दूसरा पंचायत और निगम चुनाव एक साथ कराने पर भी कई नेताओं की सहमति नहीं थी। 35 दिन में दोनों चुनाव पर भी कई लोगों ने हाथ खड़े कर दिए थे, लेकिन साय के अटल विश्वास ने असंभव को संभव कर दिया।
सवा साल के काम का कमाल
नगरीय प्रशासन मंत्री हाेने की वजह से अरुण साव की सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी। इन्होंने चुनाव से पहले शहरों के विकास के लिए निकायों को 7400 करोड़ रुपए आवंटित किए।
निकायों के मौजूदा हालात को बेहतर कर यह संदेश दिया कि भाजपा सरकार ने सवा साल में यह किया अगर महापौर आया तो सूरत बदल जाएगी। इस वजह से जनता एकतरफा भाजपा की तरफ आई।
रूठों को मनाने में सफल हुए किरण देव
प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव रूठों को मनाने में सफल रहे। टिकट न मिलने पर कई लोग विरोध में उतरे लेकिन इनकी रणनीति के आगे सभी काम में जुट गए। जगदलपुर में ही मनीष पारख को टिकट नहीं मिलने पर वे दो दिन नाराज रहे बाद में संजय पांडेय के लिए प्रचार में जुट गए।
गोपनीय बैठक में पता लगाते थे गड्ढा
अजय जामवाल और पवन साय ने एक गोपनीय टीम बना रखी थी। जिसमें भूपेंद्र सवन्नी, नंदन जैन, डॉ. विजय शंकर मिश्रा, अमित चिमनानी को रखा गया था। हर दिन रात में बैठक कर यह प्रदेश के उन निकायों को चिन्हित करते थे जहां भाजपा पीछे चल रही थी। ऐसी जगहों पर सीएम-डिप्टी सीएम की सभाएं कराते।
बड़े चेहरों को हराने की रणनीति
भाजपा ने कांग्रेस के बड़े चेहरों को हराने का जिम्मा एक-एक नेता को सौंपा था। प्रभारी नितिन नबीन ने प्रवक्ता केदार गुप्ता को रायपुर के निर्वतमान महापौर एजाज ढेबर को हराने के लिए वार्ड में लगाया। उनके साथ पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी भी लगे हुए थे। श्रीचंद को ग्रामीण के वार्ड का जिम्मा भी था।
कांग्रेस जीतने के लिए संजय की दृष्टि
महामंत्री संजय श्रीवास्तव ने टिकट वितरण में बड़ी सावधानियां बरती। जो काबिल नहीं थे, उनके टिकट काटे। चुनाव के पहले ही 37 वार्डों में निर्विरोध जीत हासिल करवा दी। इससे भाजपा की लहर बनीं। विधानसभा में वे सरगुजा प्रभारी थे, तब भी उन्होंने 14 की 14 सीटें जिताई थी।