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विशेष टिप्पड़ी: 2024 लोकसभा के हिंदी प्रदेशों में कांग्रेस की संभावना!!

भारत में मुख्यतः 10 प्रदेश ऐसे हैं जिन्हें हम हिंदी प्रदेश या हिंदी बेल्ट कह सकते हैं। ये हिंदी प्रदेश हैं हरियाणा (10 सीट), हिमाचल प्रदेश (04 सीट), उत्तराखंड (05 सीट), दिल्ली (07 सीट), राजस्थान (25 सीट), मध्यप्रदेश (29 सीट), छत्तीसगढ़ (11 सीट), उत्तरप्रदेश (80 सीट), बिहार (40 सीट) तथा झारखंड (14 सीट)।

इन 10 प्रदेशों में लोकसभा की 225 सीटें हैं। उत्तरप्रदेश, बिहार तथा झारखंड में 134 सीटें हैं जहां कांग्रेस को इंडिया गठबंधन की पार्टियों क्रमशः समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (यू) तथा झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ सीटों का तालमेल कर चुनाव लड़ना होगा। 2019 के आमचुनाव में कांग्रेस को 134 में से इन तीनों प्रदेशों में एक-एक यानी सिर्फ 03 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। जबकि बिहार में उसका आरजेडी के साथ तथा झारखंड में झामुमो के साथ समझौता था।

शेष सात प्रदेशों की 91 सीटों में से हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली तथा राजस्थान में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। सिर्फ मध्यप्रदेश में एक तथा छत्तीसगढ़ में उसे दो सीटों पर जीत हांसिल हुई थी। यह स्थिति तब थी जब कि आम चुनाव से छह महीने पहले इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। दिल्ली में कांग्रेस ने पहले भी अकेले चुनाव लड़ा था और इस बार भी आम आदमी पार्टी के साथ सीटों का बंटवारा होना अत्यंत कठिन है। क्योंकि आम आदमी पार्टी पंजाब और दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और यही स्थिति कांग्रेस की राज्य इकाइयों की भी है। पंजाब में तो कांग्रेस की राज्य इकाई ने आम आदमी पार्टी सरकार के विरुद्ध मोर्चा ही खोल रखा है।

कुल मिलाकर 2019 के आम चुनाव में इन 10 राज्यों की 225 सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 06 सीटों पर विजय हांसिल हुई थी। अभी तीन बड़े हिंदी प्रदेशों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की निराशाजनक पराजय हुई है और वह दो राज्यों में अपनी सरकार भी नहीं बचा पाई है। यद्यपि इन प्रदेशों में कांग्रेस अपना 40 फीसदी वोट सुरक्षित रख पाई है। लेकिन इन राज्यों में उसका सीधा मुकाबला भाजपा के साथ है जिसे मध्यप्रदेश में 48.5%, राजस्थान में 41.7% तथा छत्तीसगढ़ में 46.3% वोट मिले हैं। भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को इन राज्यों में क्रमशः 40.4%, 39.5% तथा 42.3% वोट मिले हैं।

विधानसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत के आधार पर यह गणना करना कि कांग्रेस को संसदीय चुनाव में इन तीन राज्यों में 19 सीटें मिल सकती हैं, फिजूल की कवायत है। मेरी राय में कांग्रेस को इन तीनों राज्यों के सभी विधानसभा क्षेत्रों को संसदीय क्षेत्रों में विभाजित कर यह देखना चाहिये कि किन संसदीय क्षेत्रों में उसे भाजपा से अधिक वोट मिले हैं या पांच से 10 फीसदी कम वोट मिले हैं।

उन क्षेत्रों को अपनी प्राथमिकता सूची में शामिल कर तथा इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों से परामर्श कर 15 फरवरी तक अपने उम्मीदवार घोषित कर देना चाहियें। ताकि संभावित उम्मीदवारों को तैयारी करने का अधिकतम समय मिल सके। भाजपा इस मामले में बहुत तेज है और वह इन राज्यों में जनवरी अंत तक या 15 फरवरी से पूर्व अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है।

कांग्रेस को अन्य हिंदी प्रदेशों हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड में भी जहां उसका भाजपा से सीधा मुकाबला होने जा रहा है, 15 फरवरी तक अपने उम्मीदवार घोषित कर देना चाहियें। हरियाणा में क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व भी है उनमें से एक भाजपा के साथ गठबंधन में है तथा दूसरी चौटाला का लोकदल है जो कांग्रेस के साथ आ सकता है। कांग्रेस यदि सुचिंतित रणनीति बना कर चुनाव मैदान में उतरती है तो वह सात हिंदी प्रदेशों की इन 91 सीटों में से पूर्व में जीती गयी सिर्फ 03 सीटों की संख्या को बढ़ाकर दहाई (10+) की संख्या तक ले जा सकती है।

शेष तीन राज्यों उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड में वह इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों पर बहुत अधिक निर्भर है। कुल मिलाकर इन सभी दस राज्यों में कांग्रेस के पास वर्तमान में सिर्फ 06 लोकसभा सदस्य हैं। कांग्रेस को यदि लोकसभा में मान्यताप्राप्त विपक्ष का दर्जा हांसिल करना है तो उसे इन दस हिंदी प्रदेशों में अपने लोकसभा सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर 30+ तक अवश्य पहुंचाना होगा। शेष सीटें उसे दक्षिण के पांच राज्यों कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश तथा पंडुचेरी के अलावा महाराष्ट्र, गोवा, ओडिशा, प.बंगाल तथा असम से हांसिल करना होंगी। तभी वह लोकसभा में सुविधाजनक स्थिति में होगी!

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