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BIG BREAKING: अप्रवासियों को नागरिकता देने वाला कानून वैध, जस्टिस सूर्यकांत बोले- जियो और जीने दो, जानिए क्या बोले CJI ?

Citizenship Act 1955 Section 6A Supreme Court | Assam Illegal Immigrants: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ समेत चार जजों ने फैसले पर सहमति जताई है। वहीं, जस्टिस जेबी पारदीवाला इससे असहमत हैं।

दरअसल, नागरिकता कानून की धारा 6ए को 1985 में असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए संशोधन के बाद जोड़ा गया था। दिसंबर 2023 में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह भारत में अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक आंकड़े नहीं दे पाएगी क्योंकि वे चोरी-छिपे आए हैं।

नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए क्या कहती है

धारा 6ए को असम समझौते के तहत भारत आए लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में जोड़ा गया था।

इसमें कहा गया है कि जो लोग 1 जनवरी 1966 को या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश सहित क्षेत्रों से 1985 में असम आए हैं और तब से वहां रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत खुद को पंजीकृत करना होगा।

नतीजतन, इस प्रावधान ने असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने की अंतिम तिथि 25 मार्च, 1971 तय की।

दिसंबर 2023 में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां

5 दिसंबर: असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए से संबंधित 17 याचिकाओं पर 5 जजों की पीठ में सुनवाई शुरू हुई। दो जजों की बेंच ने 2014 में इस मामले को संवैधानिक बेंच को सौंप दिया था।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा था- बांग्लादेश के निर्माण में भारत की बहुत अहम भूमिका थी, क्योंकि बांग्लादेश की तरह हम भी युद्ध का हिस्सा थे और फिर लोग अवैध तरीके से भारत आए।

कोर्ट ने यह भी कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे पता चले कि 1966 से 1971 के बीच बांग्लादेशी अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से असम की आबादी और सांस्कृतिक पहचान प्रभावित हुई है।

7 दिसंबर: सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों को दी गई नागरिकता का डेटा मांगा। इसके लिए केंद्र और असम सरकार को 11 दिसंबर तक का अल्टीमेटम दिया गया।

बेंच ने पूछा- 1966 से 1971 के बीच विदेशी न्यायाधिकरण आदेश 1964 के तहत कितने लोगों की पहचान विदेशी के तौर पर की गई? अब तक कितने विदेशी न्यायाधिकरण बनाए गए हैं? इनमें से कितने लंबित और सुलझे हुए मामले हैं।

12 दिसंबर: कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि भारत में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों का सटीक डेटा जुटाना संभव नहीं है। ये लोग बिना दस्तावेजों के भारत में घुस आते हैं।

अवैध अप्रवासियों का पता लगाना, उन्हें हिरासत में लेना और वापस भेजना बहुत मुश्किल है। सरकार ने यह भी कहा कि पड़ोसी देश के असहयोग के कारण भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने में दिक्कत आ रही है।

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