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विशेष टिप्पड़ी: यहाँ की दक्षिणपंथी राजनीतिक धारा में हीन-भावना से उपजा अहंकार!

मशहूर ब्रिटिश राजनीतिक विचारक हेरोल्ड लास्की ने 1945 में अपने एक व्याख्यान में भारत के बारे में एक बहुत अहम बात कही थी कि ‘यहाँ की दक्षिणपंथी राजनीतिक धारा में हीन-भावना से उपजा अहंकार’ {‘Arrogance of Inferiority’} है और यह चीज़ भारत के लिए घातक साबित होगी।’

उनका आशय यह था कि इस धारा के अनुयायियों ने स्वाधीनता आंदोलन में भाग नहीं लिया और न महात्मा गांधी का साथ दिया, न भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों का ही। देश के लिए त्याग नहीं किया और तकलीफ़ें नहीं सहीं। नतीजा यह है कि परम्परा में इनके अपने महापुरुष नहीं हैं, जिन पर ये गर्व कर सकें और जिनसे साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष की प्रेरणा ले सकें : न महात्मा इनके हैं, न शहीद। स्वाधीनता सेनानियों के बजाय अंग्रेज़ सरकार के ये हमदर्द रहे और इनके जिन एक-दो पूर्वजों ने सज़ा पाई भी, उन्होंने बाद में अंग्रेज़ों से लिखित माफ़ी माँगकर और आजीवन ‘राजभक्ति’ पर क़ायम रहने का वादा करके जेल जीवन से पीछा छुड़ाया।

इस संदर्भ के चलते इन लोगों में एक ज़बरदस्त हीन-भावना है, जिसकी अभिव्यक्ति मुख्यतः तीन रूपों में होती है। एक तो, अंग्रेज़ों के बजाय मुस्लिम शासकों को अपना दुश्मन बताने में, जबकि उनमें-से ज़्यादातर अंग्रेज़ों की तरह भारत को लूटने और यहाँ के लोगों से नफ़रत करने नहीं आए थे। इसके विपरीत उन्होंने भारत को अपनी जन्मभूमि और मातृभूमि की तरह अपनाया और यहाँ के आम जन-जीवन में रच-बसकर गंगा-जमुनी तहज़ीब की शुरुआत की।

दूसरे, विरोधी विचारधाराओं से जुड़े महापुरुषों पर नाहक़ क़ब्ज़ा करने और अतार्किक ढंग से ख़ुद को उनका वारिस घोषित करने में। भगत सिंह और सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे महापुरुष इस प्रवृत्ति के अग्रगण्य उदाहरण हैं। तीसरे, तीखे वैचारिक मतभेदों के कारण अन्य राजनीतिक धाराओं के जिन महापुरुषों की विरासत पर क़ब्ज़ा करना और उन्हें अपना बताना सम्भव नहीं है; उन पर हिंसा करने, उनकी बातों को विकृत करके प्रचारित करने और उन्हें लांछित करके खलनायक की तरह पेश करने में अपनी सारी ताक़त लगा देना। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू इस प्रवृत्ति के ज्वलन्त उदाहरण हैं।

आज देश के राजनीतिक वातावरण में दिन-रात ‘हीन-भावना से उपजे अहंकार’ के इन्हीं भीषण रूपों को हमें सहना और इनसे जूझना पड़ रहा है। समझ में नहीं आता कि इस अँधेरी सुरंग से निकलने का रास्ता क्या है! हेरोल्ड लास्की ने क्या ग़लत कहा था कि यह ‘हीन-भावना-जन्य अहंकार’ भारत पर भारी पड़ेगा।

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